रविवार, 19 फ़रवरी 2012

जीवन के सबक

जब ये सोचा की एक हिंदी में भी ब्लॉग लिखना शुरू करना चाहिए, तब "जीवन के सबक," ये नाम सोचने में मुझे ज्यादा वक़्त नहीं लगा. 

हिंदी के प्रति मेरा लगाव हमेशा ही रहा है और इसलिए ही मेरा अंग्रेजी के प्रति कभी भी ज्यादा झुकाव नहीं रहा. और शायद यही कारण था, कि इस विदेशी भाषा को जरुरत के लायक ही सीखा. हालाँकि ये बात अलग कि मुझे याद नहीं पड़ता, कि मैंने पिछले २८ वषों में कभी काम के सिलसिले में, बोलने के अलावा हिंदी का प्रयोग किया हो. 

चुनांचे, आज सुबह जब पेपर के इंतजार में अपने आई पेड पर यूँ ही वक़्त गुजारते समय, हिंदी में ब्लॉग लिखने का विचार आया तब बिना कोई देर करे उसे वास्तविक स्वरुप देने में कोई देर नहीं लगायी. 

चलिए पहली लाईन पर वापस चलते है.... हाँ, तो मैं बात कर रहा था जीवन सबक की, और ऐसे समय पिताजी की टेबल के कांच नीचे लगी पेपर की कटिंग पे लिखी पंक्तियाँ बरबस ही याद आ जाती है:

"वो मुसाफिर ता क़यामत पा नहीं सकता मुकाम, जिसको ये अहसास हो जाये की मंजिल दूर है,
कम नहीं होती भटक जाने से शाने कारवां, ये तो मंजिल की ही किस्मत कि वो हमसे दूर है".

इन लायनों में मैने, हमेशा ही जीवन के संघर्षों और सबकों को छुपा हुआ पाया. सो मेरा ये हिंदी में लिखा हुआ पहला ब्लॉग, इन्ही लायनों को समर्पित है.

संजीव.

अब देखना ये है, कि इस प्रयास को कितना आगे तक ले जा पता हूँ.
<a href="http://www.blogadda.com" title="Visit blogadda.com to discover Indian blogs"> <img src="http://www.blogadda.com/images/blogadda.png" width="80" height="15" border="0" alt="Visit blogadda.com to discover Indian blogs" /></a>

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें